जानिए आखिर क्यों भगवन भोलेनाथ शिवजी ने अपने ही पुत्र भगवन गणेश का सिर काट दिया था |
कहावत है न जैसा कर्म वैसा फल देगा | कर्म और उसके फल के नियम से इंसान क्या भगवान् क्या |
हमारे ग्रंथो और पुराणों भी ऐसी कई कहानियों से भरी पड़ी है जिसमे भगवानो द्वारा किये बुरे कर्मो का फल उन्हें भी भुगतना पड़ा है
आज हम ऐसी ही एक कथा कहेंगे जिसमे कश्यप ऋषि के श्राप के कारण भगवान् शिव ने अपने पुत्र गणेश का शीश(सर) काट दिया|
बाल गणेश के जन्म की कहानी:-
एक बार की बात है, माता पार्वती अपने स्नान गृह में स्नान कर रही थी| लेकिन उनके स्नान गृह के द्वार पर कोई भी द्वार पाल नहीं था| सारे गण भगवान् शंकर की आज्ञा से किसी विशेष काम की वजह से अनुपस्थित थे|
तभी माँ पार्वती को लगा , की सारे गण सिर्फ शिव की ही आज्ञा का पालन करते है| उनकी आज्ञा का पालन करने वाला भी कोई होना चाहिए| इसलिए वो अपने शरीर पर लगे चन्दन के उबटन को एक बालक की आकृति दी और उसमे जान डाल दी|
बालक को स्नान गृह के द्वार पर सुरक्षा हेतु खड़ा कर दिया| कुछ समय पश्चात स्वयंम भगवान् शंकर पार्वती से मिलने आये|
लेकिन बालक ने उन्हें अन्दर जाने से मन कर दिया| शिव ने बालक को बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं माना|
भगवान् शिव को क्रोध आ गया और उन्होंने पाने त्रिशूल से उस बालक का शीश(सर) काट दिया| जब माँ पार्वती ने यह द्रश्य देखा तो विलाप करने लगी|
क्रोध में शिव से कहा आप अपनी शक्ति से इस बालक को जीवित कर दीजिये अन्यथा में इस पूरे संसार को नष्ट कर दूँगी|
शिव ने माँ पार्वती का विकराल रूप देख कर, नंदी को कहा की रास्ते में सबसे पहले तुम्हे जो भी मिले उसका सर काट कर ले आओ|
नंदी को रास्ते में एक हथनी मिली| उसने बिलकुल तभी एक नवजात बच्चे को जन्म दिया था| नंदी उसका सर काट कर ले आये|
भगवान् ने हाथी के बच्चे का सर, उस बालक को लगा कर उसे पुनर्जीवित किया| माँ पार्वती को खुश करने के लिए बालक का नाम गणेश रखा और आशीर्वाद दिया|
इस संसार में जब भी किसी भी शुभ कार्य की शुरुवात होगी सबसे पहले आपकी पूजा होगी| तब से ही हर किसी शुभ काम से पेहले गणपति की पूजा करने का प्रावधान है|
ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार एक बार नारद जी ने श्री नारायण से पूछा कि प्रभु आप बहुत विद्वान है और सभी वेदों को जानने वाले हैं।
मैं आप से ये जानना चाहता हूं कि जो भगवान शंकर सभी परेशानियों को दूर करने वाले माने जाते हैं। उन्होंने क्यों अपने पुत्र गणेश की के मस्तक को काट दिया।
यह सुनकर नारायण ने बोला हे नारद, एक समय की बात है शंकर को सूर्य देव पर किसी बात पर क्रोध आ गया| दोनों में भयंकर युद्ध हुआ अंत में भगवान् शिव ने सूर्य देव को अपने त्रिशूल से घायल कर दिया|
सूर्य देव अचेतन अवस्था में अपने रथ से पृथ्वी पर गिर गए| और मरणासन अवस्था में आ गए| सूर्य का प्रकाश कम होने लगा|
ऋषि कश्यप ने जब अपने पुत्र सूर्य को इस अवस्था में देखा तो उसे सीने से लगाकर विलाप करने लगे| सारे देवता भी घबरा गए क्योंकि सूर्य का प्रकाश कम होता जा रहा था और अन्धकार बढ़ रहा था|उस समय सारे देवताओं में हाहाकार मच गया। वे सभी भयभीत होकर जोर-जोर से रुदन करने लगे। अंधकार छा जाने से सारे जगत में अंधेरा हो गया।
तब ब्रह्मा के पौत्र तपस्वी कश्यप जी ने शिव जी को श्राप दिया की जैसा आज तुम्हारे प्रहार के कारण मेरे पुत्र का हाल हो रहा है। ठीक वैसे ही तुम्हारे पुत्र पर भी होगा।
ऋषि कश्यप का रुदन सुनकर शंकर का क्रोध शांत हो गया| उन्होंने सूर्य को फिर से जीवित कर दिया| ब्रह्मा कश्यप और शिव की कृपा से सूर्य दुवारा अपनी राशि में आरुण हो गए| और अन्धकार दूर कर जगत को प्रकाशित किया|ऋषि कश्यप के इसी श्राप के कारण भगवान् शंकर ने अपने पुत्र गणेश का सर अपने त्रिशूल से काट दिया था|
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